Thursday 29 May 2014

राजधानी में बढ़ता लिव इन रिलेशनश्पि का के्रज 



जैस-जैसे युग बदल रहा है वैसे-वैसे समाज की जीवन की परिभाषा ही बदलती जा रही है। आज की युवा पीढ़ी अपने रिश्तों और शादी को लेकर किस हद तक भ्रमित है, किसी भी बंधन में बंधने से कितना डरती है, ये साफ नजर आता है। हर चीज को समझने के लिए उन्हें पहले उस चीज के बारे में अनुभव चाहिए।
 लिव इन रिलेशनशिप यानी सहजीवन। आपको याद होगा कि देश में इस विषय पर विवाद की शुरुआत दक्षिण भारतीय अभिनेत्री खुशबू के उस बयान से हुई थी, जिसमें उन्होंने विवाह पूर्व सेक्स संबंधों को जायज ठहराया था और इसके फलस्वरूप तमिलनाडु में काफी हो-हल्ला हुआ था। लेकिन बावजूद इसके लिव इन रिलेशन शिप का के्रज पूरे देश में बढ़ता जा रहा है। जिससे हमारी राजधानी भी अछूती नही हैं। यहां भी लोग दूसरे शहरों की तरह खुलेआम लिव इन रिलेशनशिप को अपना रहे हैं। कालेज से लेकर जॉब करने वाले युवक-युवती इस रिश्ते को लेकर बड़े ही संजीदा है। हालांकि हर रिश्ते की तरह अभी यह रिश्ता भी अपवादों की भ्ोंट चढ़ रहा है। शहर में लिव इन रिलेशन की हकीकत को बयान करती रुचि शर्मा की यह रिर्पोट ...
केस 1
हजरतगंज में रहने वाले एक मल्टीनेशनल कंपनी के इंजीनियर आयुष सिंह पर एक युवती ने लिव-इन रिलेशनशिप में धोख्ो के आरोप लगाए हैं। पीड़िता के दावे के मुताबिक वे दोनों पहले मोहब्बत के वादे कर साथ रहे लेकिन एक अन्य महिला के कारण उनका ये रिश्ता टूट गया। पीड़ित युवती हजरतगंज में ही एक फाइनेंस कम्पनी में काम करती है।
केस 2
 लिव इन रिलेशनशिप में रह रही प्रियंका शुक्ला कहती हैं कि वह पंजाब की रहने वाली हैं और यहां पर पढ़ाई के लिए आई हैं। वह कहती हैं कि जब मैं यहां आई तो रूम का खर्च अधिक था ऐसे में किसी के साथ रूम श्ोयर करना था, तो मुझे लगा कि दोस्त के साथ रहने में क्या बुराई है। आज हम दोनो बहुत खुश है। हां कई बार कुछ बातों को लेकर हमारे बीच झगड़ा हो जाता है। लेकिन हम एक दूसरे की केयर भी बहुत करते हैं।
केस 3
कानपुर निवासी एक युवक की पुलिस में भर्ती होने के बाद हजरतगंज में तैनाती मिली। राजधानी निवासी एक लड़की और सिपाही की फोन पर बातें होने लगी। इसके बाद वह दोनों साथ में रहने लगे। इसी दौरान महिला को पता चला कि सिपाही ने महिला थाने में ही तैनात एक महिला सिपाही से शादी रचा ली है। इस पर पीड़िता भड़क गई, उसने जमकर विरोध जताया। हालांकि मामला खाकी से जुड़ा होने की वजह से महिला आज भी गुहार लगा रही है।

केस 4
 गोमतीनगर में रहने वाले सीए दीपेंद्र गुप्ता कहते हैं कि वर्तमान में वह और उनकी एक सहकर्मी दो साल के लिव इन रिलेशन में रह रहे हैं। अगर उन दोनो की अच्छी निभेगी तो वे इस रिश्ते को आगे बढ़ाएंगे, नही तों समय पूरा होने पर वे अलग हो जाएंगे। हालांकि अभी तो वे एक दूसरे को अच्छे से समझ रहे हैं। सीए दीपेंद्र मूलत: छत्तीसगढ़ और उनकी सहकर्मी केरल की रहने वाली है।
शहर में लिव-इन रिलेशनशिप के बढ़ते मामले
महिला थाने में हर महीने दो से तीन केस लिव इन रिल्ोशनशिप में धोख्ो के दर्ज हो रहे हैं। बीते साल 3० से अधिक केसेज आए थे। महिला थाना प्रभारी शिवा शुक्ला बताती हैं कि राजधानी में भी लिव इन रिलेशन शिप का क्रेज तेजी से बढ़ रहा है। युवक-युवतियां सभी बिदांस होकर इसे अपना रहे हैं। जिससे इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। वर्तमान में अन्य मामलों के मुकाबले 4० पसेर्ंट से अधिक मामले लिव-इन रिलेशनशिप के दर्ज हो रहे हैं। वह कहती हैं कि लिव इन रिलेशनशिप में अधिकांश वे युवतियां या महिलाएं पीड़ित होती है जिनके पार्टनर कहीं बाहर से होते है या फिर वे स्वयं दूसरी जगह से आयी होती हैं। आज युवक ही नही अध्ोड़ भी लिव इन रिलेशनशिप जैसे रिश्तों का फायदा उठा रहे हैं, क्योंकि कई बार पीड़िताएं यही शिकायत लेकर आती है कि फलां आदमी उनके साथ इस रिश्ते में इतने दिनो से झूठ बोलकर रह रहा है। जबकि घर पर उसके बीवी-बच्चे सब हैं।



क्या सोचती है युवा पीढ़ी
वर्तमान युवा पीढ़ी लिव इन रिलेशनशिप जैसे संबंधों के प्रति अत्याधिक आकर्षित दिखाई दे रही है। इसके पीछे उनका तर्क यह है कि विवाह के बंधन में बंधने से पहले एक-दूसरे को अच्छी तरह से समझ लिया जाए तो वैवाहिक जीवन में ताल-मेल बैठा पाना और आसान हो जाता है। हालांकि हमारा परंपरावादी समाज महिला और पुरुष को विवाह से पहले साथ रहने की इजाजत नहीं देता कितु अब हमारे युवाओं की मानसिकता ऐसी सोच को नकारने लगी है जो उन्हें किसी भी प्रकार के बंधन में बांध कर रख पाए। इसीलिए युवा 'लिव इन’ में जाने से बिलकुल नहीं हिचकिचाते।
 लिव इन रिलेशनशिप जैसे रिश्तों में उन लोगों की रुचि होती है, जो भारतीय मूल्यों और संस्कृति में विश्वास नहीं रखते। परिवार की जिम्मेदारियों या संस्कार का नामोनिशान तक नहीं होता है। लिव इन रिलेशनशिप का चलन महानगरों में अधिक देखने को मिलता है। अब इसे बड़े शहरों में भी मान्यता मिल गई है। जिसे निश्चित रूप से उन युवाओं का समर्थन है, जो उसमें विश्वास रखते हैं हालांकि मान्यता मिलने या न मिलने से बहुत अधिक फर्क नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि सही और गलत समाज में पहले से ही मौजूद है। आज युवा लिव इन रिलेशनशिप को सही मानते हैं वजह ये है कि कई मौकों पर यह देखने में आता है कि महिलाएं और पुरुष जब प्रेम संबंध में पड़ते हैं तो उन्हें लगता है कि विवाह से पहले एक साथ रहना बहुत जरूरी है। वे सोचते हैं कि एक-दूसरे के साथ को लेकर सहज हो जाने से आगामी जीवन बिना किसी परेशानी के काटा जा सकता है।
दुष्प्रभाव
हम इस बात को कतई नकार नहीं सकते कि लिव इन जैसे संबंधों के टूटने का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव महिलाओं पर पड़ता है। हमारा समाज एक ऐसी महिला को कभी सम्मान नहीं दे सकता जो विवाह पूर्व किसी पुरुष के साथ एक ही घर में रह चुकी हो। ऐसे हालातों में संबंध जब टूटता है तो उसका भविष्य अंधकारमय हो जाता है। वहीं लिव इन में संलिप्त रह चुका पुरुष, जो हमेशा से ही महिलाओं की अस्मत से खेलना अपना अधिकार समझता आया है, की गलती को कोई महत्व ना देकर नजरअंदाज कर दिया जाता है।
 महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अपने संबंधों के प्रति अधिक संजीदा और भावनात्मक लगाव रखती हैं। इसीलिए लिव इन संबंध के टूटने का प्रभाव केवल उन महिलाओं पर ही पड़ता है जो परंपरावादी सोच वाली, आर्थिक तौर पर सेटल या अपने भविष्य को लेकर आश्वस्त नहीं हैं, बल्कि यह उन महिलाओं को भी अपनी चपेट में ले मानसिक रूप से आहत करता है जो मॉडर्न और आत्म-निर्भर होती हैं। हालंकि कई ऐसी महिलाएं भी हैं जो अपने कॅरियर को प्राथमिकता देते हुए शादी जैसी बड़ी और महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से बचना चाहती हैं, लेकिन ऐसे में उन महिलाओं की मनोदशा को नहीं नकारा जा सकता जो किसी बहकावे में आकर ऐसे झूठे रिश्तों की भेंट चढ़ जाती हैं।

सुप्रीम कोर्ट की राय


सर्वोच्च न्यायालय द्बारा 'लिव इन रिलेशनशिप’ के समर्थन में की गई टिप्पणी के बाद एक बार फिर 'परिवार’ नामक सामाजिक संस्था के अस्तित्व पर बहस छिड़ गई है। विदेशी संस्कृति का अंधाधुंध अनुसरण कर रही हमारी युवा पीढ़ी को इस टिप्पणी के जरिए एक और बहाना मिल गया है।
 भारत जैसे परंपरावादी देश में जहां आमतौर पर आबादी का बड़ा हिस्सा भगवान राम के 'एक पत्नी सिद्धांत’ को ही आदर्श मानता है, रामनवमी की पूर्व संध्या पर आई सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी उसके गले नहीं उतरी।
 सवाल यह है कि अगर हम आधुनिकता के नाम पर इन रिश्तों को अमली जामा पहनाते भी हैं तो युगों से सहेजी गई भारतीय संस्कृति और संस्कारों का क्या होगा? इस मुद्दे पर जब बात की विभिन्न वर्ग के लोगों से तो चौंकाने वाली प्रतिक्रिया सामने आई...
पहले भी रहे हैं ऐसे रिलेशंस
प्राथमिक विद्यालय कि शिक्षक प्रज्ञा श्रीवास्तव ने कहती हैं कि हमारे समाज में इस तरह की रिलेशनशिप धीरे-धीरे सामने आ रही है। यह नई बात भी नहीं है। सदियों से हमारे यहां इस तरह के रिलेशन्स मेंटेन होते रहे हैं। हालांकि इन्हें किसी भी नजरिए से सही नहीं ठहराया जा सकता।
भारतीय समाज में बढ़ावा नहीं मिलेगा
नेशनल कालेज कि छात्रा सुप्रिया चौरसिया का कहना है कि लिव इन रिलेशनशिप में उन लोगों की रुचि होती है जो भारतीय मूल्यों और संस्कृति में विश्वास नहीं करते हैं। जबकि इस कॉन्सेप्ट में परिवार की जिम्मेदारी या संस्कार का नामोनिशान तक नहीं होता। भारत में भी कुछ लोग इसमें रुचि रखते हैं लेकिन भारतीय समाज में इसे बहुत ज्यादा बढ़ावा नहीं मिलेगा।
गलत क्या है
लखनऊ विश्वविद्यालय से बी कॉम कर रही अनविका श्रीवास्तव का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी युवाओं के लिए सुकून भरी है। पहले भी इस तरह के रिश्ते दबे-छुपे मेंटेन होते थे। आज खुले दिमाग से सोचने की आवश्यकता है। न्यायालय द्बारा लिव इन रिलेशनशिप के समर्थन पर बवाल उठने का प्रश्न ही नहीं है। इसमें गलत क्या है।


अपनी-अपनी नैतिकता
फैशन डिजाइनिंग कर रहे शुभम पाण्डेय का कहना है कि इस तरह के संबंधों को सामाजिक स्वीकारोक्ति मिलना चाहिए। कानूनी उलझनों के कारण यह संबंध उजागर नहीं हो पाते हैं। जहां तक सवाल नैतिकता का है, वह व्यक्तिगत मामला है। जरूरी नहीं कि सभी के लिए नैतिकता के मायने समान हों।
झेलना पड़ता है विरोध
बीटेक छात्र मुकेश धामी कहते है कि इस तरह के रिलेशंस को लंबे समय तक मेंटेन करना मुश्किल होता है, साथ ही आपको समाज का विरोध भी झेलना पड़ता है। धीरे-धीरे परिस्थितियां बदल रही हैं। महानगरों में किसी लड़की का अकेला रहना इतना आसान नहीं होता, ऐसे में किसी पुरुष साथी की आवश्यकता होती ही है। जरूरत सिर्फ इस बात की है कि दोनों पार्टनसã एक-दूसरे को समझें और स्वयं पर काबू रखें।
महिलाएं समझती हैं भावनाएं
सरकारी कर्मचारी महेश शर्मा कहते हैं कि महानगरों में इस तरह के रिलेशनशिप आम है। फ्लैट्स के महंगे किराए और अन्य परेशानियों के चलते युवा इसे प्राथमिकता देते हैं। किसी पुरुष के साथ साझा रहने से बेहतर होता है किसी युवती के साथ रहा जाए। महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कहीं अधिक विश्वसनीय, भावनाओं को समझने वाली होती हैं।
अपना-अपना नजरिया
रियल स्टेट कंपनी में कार्यरत शिवानी कहती हैं कि व्यक्ति का अपना एक नजरिया होता है। लिव इन रिलेशनशिप का मसला भी ऐसा ही है। देश हो या विदेश न सभी लोग लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं। सभी को अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने का हक है। 

Wednesday 28 May 2014

  1. चेहरे के साथ सपने झुलसाता तेजाब 



'विनोदिनी के पिता को पैसे उधार देने के बाद, राजू की नीयत विनोदिनी पर थी वह उससे शादी करना चाहता था। मासूम विनोदिनी के इनकार करने पर उसने उसे तेजाब से नहला दिया।
 विद्या के माता-पिता ने जब उसकी शादी स्थगित कर दी, तो उसके मंगेतर ने उसके चेहरे पर तेजाब उड़ेल दिया।
 इकतरफा प्रेम में सिरफिरे आशिक का प्रेम पत्र न स्वीकार करने की सजा अर्चना ठाकुर को ऐसी मिली की आज उसका खूबसूरत सा चेहरा तेजाब की आग में बुरी तरह से जल गया है। ये मामले तो महज बानगी मात्र है। आज देश भर में न जाने ऐसी कितनी लड़कियां हैं जिनके सपने पल भर में चूर हो गए हैं। एक पल में उनकी जिंदगी से सारी खुशियां काफूर हो गईं। आज वे शरीर से जिंदा तो हैं लेकिन आत्मा से वह उसी दिन मर गई थीं जिस दिन उनके साथ यह अन्याय हुआ था। वे समाज व कानून से बस एक ही सवाल कर रही हैं कि आखिर मेरा कसूर क्या था? ’
 आजकल महिलाओं पर तेजाब फेंकने की घटनाएं बराबर देखी जा रही हैं। इसको देखते हुए केंद्र सरकार ने इसके खिलाफ सख्त कदम उठाने का विचार किया और गृह मंत्रालय ने इसके लिए भारतीय दंड संहिता में संशोधन लाने का प्रस्ताव रखा है। प्रस्ताव के अनुसार तेजाब फेंकने वाले को दस साल की कैद और दस लाख रुपये जुर्माना लगाने का प्रावधान है। सरकार के काम की गति को देख कर हम अंदाजा लगा सकते हंै कि आने वाले पांच छह सालों में ये कुछ संशोधनों के साथ तब आनन-फानन में पास करा कर लागू कर दिया जायेगा जब इस अपराध का आंकड़ा आसमान छूने लगेगा और यह रोज की बात हो जाएगी। महिला संगठन और कुछ एनजीओ उस कानून को पास कराने के लिए आन्दोलन करेंगे हो हल्ला मचाएंगे कुछ बवाल भी होगा पर तब तक न जाने और कितनी लड़कियों का जीवन इस घटिया मानसिकता के कारण कि ए गए इस अपराध से बर्बाद हो चुका होगा ।
क्यों फेंकते हैं तेजाब
 अक्सरएसिड अटैक से जुड़े कई मामलो में मुख्य कारण बेवफाई होता है। बेवफाई कर दी तो तेजाब डाल कर जिस्म जला दिया। लड़की ने हां नहीं बोला तो तेजाब डाल दिया। कुछ मामले तो ऐसे देख्ो जाते हंै जहां लड़की के घरवालों द्बारा दहेज न मिला तो ससुरालवालों ने लड़की पर तेजाब फेंक दिया। सुनने में अब ऐसी खबरें कितनी मामूली सी लगती हैं कि फलां लड़की पर फलां लड़के ने तेजाब फेंक दिया। पर क्या कभी किसी ने इस बात का अंदाजा लगाया है कि ये तेजाब महज महिलाओं के शरीर को ही नहीं बल्कि उन्हे मानसिक रूप से भी आघात पहुंचाता है। इसके साथ ही उनका सामाजिक जीवन भी खत्म कर देता है। वे बेचारी जिंदगी भर दूसरों का मोहताज बन कर रही जाती है। जिंदगी में फिर से आत्मविश्वास के साथ समाज का सामना करना काफी मुश्किल होता है। किसी लड़की या महिला पर तेजाब से हमला करना, सबसे क्रूर हमला माना गया है। तेजाब एक ऐसा हथियार है जिसे अमूमन चेहरे पर डाला जाता है, जिसका मकसद महज सिर्फ उस इंसान का चेहरा खराब करना होता है जिसके लिए दिल में नफरत होती है। इस हमले की ज्यादातर शिकार महिलाएं होती हैं। एसिड अटैक एक ऐसा भयावह अपराध है जो की इंसान को एक असीम दर्द लेकर जीने को मजबूर कर देता है, जीने का मकसद खत्म कर देता है। एक ऐसे अंधेरे में डाल देता है जिसकी रोशनी का कोई ठिकाना नहीं होता। इस निर्दयी अपराध को अंजाम देने के लिए एचसीएल और सलफ्यूरिक जैसे एसिड का प्रयोग किया जाता है। ऐसी स्थिति देखकर हम नारी सशक्तिकरण की बात कैसे कर सकते हैं? एसिड अटैक के बहुत कम ही मामले ऐसे हैं जो लोगों की नजर में आ पाते हैं।
 घटनाओं के आंकड़े
दुनिया के करीब बीस देशों में हर वर्ष करीब 15०० लोग एसिड अटैक के शिकार होते हैं और इनमे 8०% औरतें होती हैं। जिनमें से 7०% की उम्र 18 साल के आस-पास होती है। दक्षिण एशियाई देशों में ही ऐसे कुकृत्य ज्यादा देखने में आते हैं और इनमे प्रमुख भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान , अफगानिस्तान, कम्बोडिया आदि हंै। इन देशों में एक वर्ष में करीब 1०० एसिड अटैक के मामलों की रिपोर्ट दर्ज होती है। इसके अलावा ऐसे कितने मामले दब जाते हैं जिनकी कोई गिनती नहीं होती है।
 एक सर्वे के मुताबिक भारत चौथा ऐसा देश है जहां महिलाओं को सबसे ज्यादा खतरा है। चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या वर्ग की हों। शादी के लिए इनकार किया, तलाक के लिए आगे बढ़ी या प्रेमी के प्रेम प्रस्ताव को ठुकराया तो ज्यादातर ऐसे मामले में महिलाओं पर एसिड अटैक किया गया। दहेज, जमीन-जायदाद व बिजनेस के विषय में भी महिलाओं पर एसिड फेंका गया। इनमें से 34 फीसद मामले ऐसे थे जिसमें युवती ने शादी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। पिछले कुछ सालों में एसिड अटैक के मामले इस कारण भी बढ़े हैं क्योंकि यह सस्ता व आसानी से सुलभ था बजाय किसी और हथियार के।
 लम्बी न्यायिक प्रक्रिया
 भारत में भी देश के एक कोने से दूसरे कोने तक आज अनेक महिलाएं इस जघन्य अत्याचार की शिकार हो रही हैं। जो आज अपना एक खूबसूरत सा चेहरा खो चुकी हैं। जिनकी बस कहानियां ही बाकी रह गईं हैं। हमारे कानून में तेजाब फेंकने वाले अपराधियों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान नहीं है। न्यायिक प्रक्रिया भी बहुत लम्बी है, और फैसला आने तक अपराधी किसी की जिन्दगी तबाह कर खुद आराम से सामान्य जीवन बिताते रहते हैं । जबकि पीडिèता न सिर्फ असहनीय दर्द झेलते हुए एक जिदा लाश की तरह हो जाती है बल्कि उसके चरित्र पर भी उंगलियां उठाई जाती हैं। तेजाब सिर्फ चेहरे को ही नहीं झुलसाता बल्कि पीड़ितों के लिए एक-एक दिन जीना मुश्किल कर देता है। अक्सर उनकी आंखों की रौशनी भी चली जाती है। उन्हे कान से सुनाई नहीं देता और उनके हाथ-पैर भी ठीक से काम नहीं करते हैं।


क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट 


महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे तेजाब हमले को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने इस पर चिता जताई है। इस मामले में तेजाब हमले की पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर तेजाब बिक्री पर रोक लगाने और तेजाब हमले के अपराध में कड़ी सजा का प्रावधान करने की मांग की है। एसिड अटैक के बढ़ते मामलों के कारण पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कुछ अहम फैसले किए। शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे हमले में दोषी पाए गए लोगों को जमानत नहीं मिलेगी। पीडिèता को बड़ा मुआवजा देने व उसके पुनर्वास के भी निर्देश जारी किए गए। यहां तक कि तेजाब की खुलेआम बिक्री रोकने का निर्देश भी दिया गया। अब तेजाब की बिक्री के लिए विक्रेता को तेजाब खरीदने का सही कारण भी बताना होगा। विक्रेता को ग्राहक का नाम, पता व टेलीफोन नंबर भी रिकार्ड में रखना होगा। तेजाबी हमले की शिकार ज्यादातर गरीब परिवारों की युवतियां थीं, जिनके पास अपना इलाज कराने के लिए पर्याप्त पैसे भी नहीं थे। सरकार को अब इनके प्रति मानवीय होना होगा। उन्हें निर्धारित मुआवाजा राशि तो देनी ही है। उनका इलाज भी कराना होगा। समाज के लोगों को भी इनके प्रति अपना नजरिया बदलना होगा। इससे इनकी जिदगी के कुछ दर्द कम होंगे और जीवन जीने की एक नई उम्मीद जगेगी।
जुर्माना और मुआवजा
 विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस अपराध के लिए कम से कम दस साल से लेकर उम्र कैद तक की सजा और दस लाख रुपए जुर्माने के प्रावधान की सिफारिश की थी। आयोग ने जुर्माने की राशि पीड़ित को देने का प्रावधान कानून में ही करने का सुझाव दिया था। इसके लिए उसने कई देशों के कानूनों की छानबीन की थी। आयोग का मत था कि तेजाब के हमले के पीड़ितों के लिए ही नहीं बल्कि बलात्कार और यौन उत्पीड़न जैसे अपराधों से पीडिèत के पुनर्वास के लिए भी केंद्र, राज्य और जिला स्तर पर मुआवजा बोर्ड बनाने की आवश्यकता है। भारतीय दंड संहिता में शामिल धारा 326 (क) का संबंध किसी व्यक्ति द्बारा जानबूझ कर किसी पर तेजाब फेंककर उसे स्थायी या आंशिक रूप से कुरूप बनाने या शरीर के विभिन्न अंगों को गंभीर रूप से जख्मी किए जाने से है। यह एक संज्ञेय और गैर जमानती अपराध है जिसके लिए कम से कम दस साल और अधिकतम उम्रकैद की सजा हो सकती है। इसके साथ ही दोषी पर उचित जुर्माना भी किया जायेगा और जुर्माने की रकम पीड़ित को देने का इसमें प्रावधान है।

कानून काफी नहीं है
इस तरह के अपराधों को हम केवल कानून बना कर नहीं रोक सकते है या ये कहें कि किसी भी सामाजिक समस्या को केवल कानून बना कर नहीं रोका जा सकता है। दहेज़ कानून , कन्या भ्रूण हत्या ,बाल विवाह और घरेलू हिसा कानून बना कर हम पहले ही देख चुके है। इससे अपराध पर कोई लगाम नहीं कसा जा सका है। उसके बाद एक लड़की पर तेजाब फ़ेक कर उसे मौत से भी बदतर जीवन देने वाले के लिए क्या दस साल की कैद काफी है? किसी लड़की के लिए इस तरह की घटना मौत से भी बड़ी है। ऐसा करने वालों पर तो हत्या का मुकदमा चलाना चाहिए और उसे लड़की के जीवित रहने पर कम से कम आजीवन कारावास और उसकी मृत्यु होने पर उसे सीधे फांसी की सजा का प्रावधान होना चाहिए। फिर कानून बना देने से काम नहीं चल सकता है। जरूरी है कि उसे कड़ाई से लागू किया जाए अपराधी को जल्द से जल्द पकड़ा जाए और उसे सजा भी दिलाई जा सके। लेकिन वर्तमान में हमारे देश की कानून व्यवस्था को देख कर मुमकिन नहीं लगता है कि ऐसा हो पाना संभव है?
अपराधी की मानसिकता पर चोट की जाए
अब यहां सवाल यह है कि इन घटनाओं को कैसे रोका जाए? ऐसे में इसके लिए जरूरी है कि अपराध की मानसिकता पर चोट की जाए। अभी तक जो भी केस सामने आए हैं उन सभी में तेजाब फेंकने के पीछे वजह यही थी कि लड़की का चेहरा ख़राब करके उसके जीवन को बर्बाद कर दिया जाए। उसे शारीरिक नुकसान के साथ ही एक बड़ी मानसिक चोट दी जाए। जिससे वो कभी भी बाहर ना आ सके।
 सरकार जो प्रस्ताव ला रही है उसमे भी दस लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है जो निश्चित रूप से लड़की के लिए होगा ताकि वह अपना इलाज करा सके। कितु जब अपराधी इस जुर्माने को भर ही नहीं सकेगा तब इसके लिए जरूरी है कि सरकार पीड़िता की प्लास्टिक सर्जरी कराए ताकि पीड़िता को उसका पुराना चेहरा मिल सके। यह सर्जरी भी आधुनिक सर्जरी होनी चाहिए। ताकि अपराधी के तेजाब फेंक कर उसका चेहरा बरबाद करने का मकसद पूरा न हो सके । जिससे इस तरह की कोई भी बात किसी के दिमाग में न आए। 

Monday 24 February 2014


‘सुदंर चेहरा, ओजस्वी व्यक्तित्व ·भी उसकी  पहचान थी।
वाला  चश्मा, नकाब  और अभिशप्त जीवन अब उसका  वजूद है।’

किसी  सन कि  दॢरदे के  तेजाबी हमले कि  शिकार  हुई ये मासूम कलियां  इस ·दर कुचली  जा चुकी  हैं कि इनके  जीने का  मकसद  खत्म हो चुका  है। यंत्रणा और पीड़ा से भरा जीवन जीने को  मजबूर ये लड़किया  मृत्यु मांगने को  मजबूर हैं। पिछले कुछ  दशको  में गैंग रेप कि  तरह तेजाब भी औरतों के  खिलाफ ए· अचू· हथियार बन चुका  है।‘छेड़छाड़ का  विरोध किया, प्यार ठुकराया , शादी से इंकार  किया , इगो को  ठेस पहुंचाई, यहं तक  कि  इगनोर भी किया  तो तेजाब डाल कर  झुलसा दो। झुलसे चेहरे और जख्मों के  साथ जिन्दगी भर रोएगी और अफसोस ·रेगी कि  क्यों लिया पंगा।’हाल ही में अदालत द्वारा तेजाबी हमलों पर कुछ कठोर  नियम बनाने से आस तो जगी है लेकिन  ये नियम तेजाबी हमले रोकने में कितने कारगर होंगे ये कहना कठिन है। सवाल उठता है कि  क्या सुप्रीम कोर्ट के  निर्देश के  बाद तेजाब खुलेआम बिकना बंद हो जाएगा? क्या आई कार्ड द्वारा खरीदा गया तेजाब किसी को  नहीं जलाएगा? क्या तेजाब हमला गैर जमानती होने से ऐसे हमले रुकेगे? पीडि़ता को  मुआवजा बस तीन लाख। ये तीन लाख क्या जिन्दगी भर कि  बेबसी और जख्मों पर मरहम लगा पाएंगे। गौर कीजिए पांच दस लाख तो इलाज में ही खर्च हो जाते हैं। शादी ब्याह, बच्चे, नौकरी सभी ख्बाव को  तिलांजलि मिलने के  बाद आखिर कोई जिए भी तो किस सहारे। ऐसी उत्पीडऩ के  चलते अर्चना अपनी कहानी बयान करती है ।
  मैं अर्चना एक छोटे से शहर फरीदाबाद कि  रहने वाली,मेरे शहर से बड़े मेरे सपने थे। अपने मां बाप की  सबसे प्यारी और लाडली हूं । मेरे पैदा होने से लेकर मुझमें समझदारी आने के  बाद से मैंने उनके  आंखो में अपने लिए हजार सपनें देखे और उन सपनों को  पूरा करने का  ख्याल मेरे मन में हमेशा से रहा । यहा सोचती थी कि  एक  दिन सारे सपनों को खुद कि  मुठ्टी   में संजोग लूंगाी । करीबन तब १९ की  उम्र होगी मेरी, सहेलियो के  साथ स्कूल  जाना पढऩा लिखना खेल खूद सव में सबसे आगे रहेती थी । अभी बस सपनों कि  दुनिया में पैर ही रखा था कि  उसकी नजर मुझ पर पड़ी और वो मुझे इस कदर पसन्द करने लगा कि  मेरी मर्जी जनना ही नहीं चाहा । यह एक  तरफा प्यार था । मेरी कभी गलती से भी उस पर नजर पड़ जाती तो मुंह फेर लेती थी । उसका मुझे बार बार डराना धमकाना, धीरे धीरे उसका  प्यार पागलपन में तब्दील हो गया । उसका  प्यार मेरे लिए खौफ बन गया । मैंने अपनी ये बात अपने गांव के  प्रधान से बोली अपनी गुहार लगाई पर कोई ठोस कदम नहीं उठा । दिन बीते गये पर अब वक्त कुछ  अलग मोड़  दिखाने वाला था । हाथ में स्कूल  बैग रोजाना कि  तरह स्कूल के  लिए निकल पड़ी । वो दिन हर दिन कि  तरह था पर वक्त आज बदला नजर आ रहा था उस शख्स ने मुझे पल भर में अन्धकार में डाल दिया था । उस तेजाब की  बौछार से मेरी चमड़ी ही नहीं मेरी जिन्दगी मेरे सपनें भी जला कर राख कर  डाले । उस पल से मेरी जिन्दगी थम गई मेरे सपने मेरा बचपन सब उस तेजाब के  धुंए के  साथ खत्म हो गया ।
  आज मेरी उम्र २४ साल कि  है समय तो चल रहा है पर वो दर्दना· घटना आज भी मैं अपने साथ ले·र चल रही हूं। दैनिक  क्रिया के  लिए मां बाप ही एक मात्र सहारा हैं। पीड़ा इतनी है कि  ज़मीन पर एड़ी नहीं रखी जाती। गर्दन से लेकर लोअर एबडोमन तक  दर्द और जलन बना रहता है। गर्मी का एक एक  क्षण मौत के  बराबर।  मेरा दर्द अब मेरे घरवालो के  लिए भी असहनीय हो चुका है। वो भले ही अपना दर्द का  जिक्र  न करे पर आंखे सब कहा देती है ।

  कानून में संंशोधन काफी संजीदा ओर गम्भीर मामला है । इसकि प्प्रक्रिया या ऐसी बनाई जानी चाहिए ·कि विभिन्न कानून के  सन्दर्भ में आम आदमी कि  प्रतिक्रिया  मिलती रहे । फीडबैक  के  आधार पर इसमें सत्त सुधार होना चाहिए । तभी कानून समाज के  अनुकूल बना रहेगा और लोगों को  वास्तवि· न्याय मिल सकेगा । आज नए कानून ने अपराधियों की  केवल सजा बढ़ाई है। इसमें तेजाब हमले कि  शिकार पीडि़ता कि  मदद के  लिए कोई प्रावधान नहीं है। पीडि़ता को ताउम्र बदसूरत चेहरे और ‘मनोवैज्ञानि· घाव’ के  साथ जीने के  लिए मजबूर होना पड़ता है। वे तेजाब हमले से निपटने के  लिए एक  अलग कानून की  मांग कर  रहे हैं, जिसमें सहजता से बाजार में बिक  रहे नाइट्रिक  और सल्फ्यूरिक  अम्ल को  नियंत्रित करने के  लिए भी प्रावधान हो। तेजाब हमले कि  पीडि़ता को  दीर्घकालिक  सर्जरी कि  जरूरत होती है। सरकार  कि  इसे प्रावधानों में जरूर शामिल करना चाहिए। अपराधी को खबर होनी चाहिए कि वह किसी कि  लड़की  जिंदगी तबाह कर के  सजा से नहीं बच सकता।

Thursday 6 February 2014

आप  कि खास  हमारी  आस  , गिरती  साख 

वो दिन भी थे जब अन्ना अनशन में थे और केजरीवाल उनके सहयोगी तब केजरीवाल कि छवि एक आम यक्ति के रूप में थी। जिसने सब कि लड़ाई को कूद कि लड़ाई समझी और अकेले ही मैदान में निकलने कि सोची। पर आज अफ़सोस इस बात का है कि वो   जिस काम को करने के लिए निकले थे राजनीती में आ कर वे उसी रंग में ढलते नज़र आ रहे है । भ्रस्टाचार के खिलावफ आवाज़ उठा कर मुखमंत्री तो बन गए अब आप खुद को ईमानदार और दुसरो को भ्रस्टाचार साबित कर के कहीं आप प्रधानमंत्री बनने  कि तो नहीं  सोच रहे है ? बस  आपकी  चिंता  करते हुआ हम यही मनाएंगे  कि सता में में  आपका  पता सलामत  रहे . 

Tuesday 28 January 2014

                        हर चाय की दुकान छोटू के नाम !


बचपन के वो हसीन पल याद करके, वो शरारते याद करके, आज भी चेहरे पर मानो मुस्कुराहट नहीं रूकती । न किसी तरह की चिन्ता न किसी तरह का तनाव और सभी जिम्मेदारियों से एकदम आजाद । हर बात में अपनी जिद्द करना चीज़े पसन्द आ जाना तो उसे हसिल करके ही रहना । वाह! क्या दिन थे वो बचपन के । पर क्या सभी का बचपन एक जैसा हो ऐसा जरूरी नहीं ।
       आज जब मैं उन बच्चो को सड़क पर काम करते हुये देखती हंू जिनकी उम्र में हम बिस्तर में ही खाना खाते थे आज  हमारी उसी उम्र के ही वो बच्चे रोटी पाने के लिए काम करते हैं। बाल मजदूरी की समस्या से आप अच्छी तरह वाकिफ होगें । कोई भी ऐसा बच्चा जिसकी उम्र 14 वर्ष से कम हो और वह जीविका के लिए काम करे बाल मजदूरी कहलाता है । गरीबी, लाचारी,भूखमरी, माता पिता की प्रताड़ना के चलते बच्चे बाल मजदूरी की दलदल में फंसते जा रहे है । आज दुनिया में 215 मिलियन ऐसे बच्चे है जो 14 वर्ष से कम है और बाल मजदूरी का शिकार हो रहे है ।  जो समय हमारा किताबो यारो- दोस्तो, खेल खूद में बीता वही समय ऐसे बच्चो का बर्तन, झाडू- पूछें ,होटलो में सफाई, रिक्शा चलाने में बीत रहा है । भारत में यह स्थिति बहुत भयावह हो चला है । दुनिया में सबसे ज्यादा बाल मजदूरी भारत में है । 1991 की जनगणना के हिसाब से बाल मजदूरों का आकंडा 11.3 मिलियन था । 2001 में यह आकंडा बढ़कर 12.7 मिलियन पहुंच गया ।
       घर से बाहर निकलते ही हर दुकान ढाबे में आपको छोटू, राजू, मुन्नी मिलेंगे । कोई चाय के कप साफ करता कोई पूछें लगाते तो कोई रिक्शा चलाते । इसमें सबसे  बड़े दोषी हम खूद है।  बाल श्रम की चर्चा करते हुये हम बड़े आराम से उनसे चाय ले लेते है काम करवा लेते है । हम ही है जो इसे बढ़वा दे रहे है । उन बच्चो से काम करवाते वक्त कभी ये सोचा है कि इन बच्चे की उर्म में हमारे बच्चे कैसे थे? वो क्या करते थे ? नहीं सोचा होगा तभी तो इस अपराध को  बढ़ावा देने वाले हम ही है  और यह बात केवल बाल मजदूरी तक ही सीमित नहीं है , इसके साथ ही उन मासूमो के  साथ कई घिनोने काम  भी होते है । मेरे अनुमान से अगर 80% बाल मजदूरी है तो 50% उन बच्चो में शारीरिक प्रताड़ना के शिकार हो रहे है । बाल मजदूरी की उस स्थिति में सुधार लाने के लिए सरकार ने चाइल्ड लेबर एक्ट बनाया जिसके तहत बाल मजदूरी को अपराध माना गया । यह तक की आज सरकार हर जगह  सरकारी विघालये खुले है । जिनमें 8वीं तक की शिक्षा अनिवार्य और निष्शुल्क कर दी लेकिन गरीबी बेबसी ने इसे निष्फल सबित कर दिया । उन बच्चो के मां- बाप इस वजह से उन्हे  आगे नहीं भेजते क्योंकि स्कूल जाने से परिवार की आमदनी कम हो जायेगीं ।
         बाल मजदूरी का सबसे बड़ा कारण है गरीबी । गरीबी के चलते मां बाप ऐसा कदम उठाते है । पर अगर वो पढेÞ लिखे नहीं है तो हम तो है । हर वो बच्चा जो अपने बचपन को खोकर बाल मजदूरी के दल दल में फंस रहा है  हम खूद उन्हें रास्ता दिखाये । सरकार द्वारा दी गई सेवायें (जैसे निशुल्क शिक्षा ) तक उन्हें पहुंचाये । और साथ ही साथ सरकार को भी इस विषय में गम्भीर रूप से सोचना होगा और ऐसे अपराध को रोकने के लिए सशक्त कानून और गरीबी दूर करने के लिए कुछ जिम्मेदारियां सरकार भी उठाये ।