Thursday 29 May 2014

राजधानी में बढ़ता लिव इन रिलेशनश्पि का के्रज 



जैस-जैसे युग बदल रहा है वैसे-वैसे समाज की जीवन की परिभाषा ही बदलती जा रही है। आज की युवा पीढ़ी अपने रिश्तों और शादी को लेकर किस हद तक भ्रमित है, किसी भी बंधन में बंधने से कितना डरती है, ये साफ नजर आता है। हर चीज को समझने के लिए उन्हें पहले उस चीज के बारे में अनुभव चाहिए।
 लिव इन रिलेशनशिप यानी सहजीवन। आपको याद होगा कि देश में इस विषय पर विवाद की शुरुआत दक्षिण भारतीय अभिनेत्री खुशबू के उस बयान से हुई थी, जिसमें उन्होंने विवाह पूर्व सेक्स संबंधों को जायज ठहराया था और इसके फलस्वरूप तमिलनाडु में काफी हो-हल्ला हुआ था। लेकिन बावजूद इसके लिव इन रिलेशन शिप का के्रज पूरे देश में बढ़ता जा रहा है। जिससे हमारी राजधानी भी अछूती नही हैं। यहां भी लोग दूसरे शहरों की तरह खुलेआम लिव इन रिलेशनशिप को अपना रहे हैं। कालेज से लेकर जॉब करने वाले युवक-युवती इस रिश्ते को लेकर बड़े ही संजीदा है। हालांकि हर रिश्ते की तरह अभी यह रिश्ता भी अपवादों की भ्ोंट चढ़ रहा है। शहर में लिव इन रिलेशन की हकीकत को बयान करती रुचि शर्मा की यह रिर्पोट ...
केस 1
हजरतगंज में रहने वाले एक मल्टीनेशनल कंपनी के इंजीनियर आयुष सिंह पर एक युवती ने लिव-इन रिलेशनशिप में धोख्ो के आरोप लगाए हैं। पीड़िता के दावे के मुताबिक वे दोनों पहले मोहब्बत के वादे कर साथ रहे लेकिन एक अन्य महिला के कारण उनका ये रिश्ता टूट गया। पीड़ित युवती हजरतगंज में ही एक फाइनेंस कम्पनी में काम करती है।
केस 2
 लिव इन रिलेशनशिप में रह रही प्रियंका शुक्ला कहती हैं कि वह पंजाब की रहने वाली हैं और यहां पर पढ़ाई के लिए आई हैं। वह कहती हैं कि जब मैं यहां आई तो रूम का खर्च अधिक था ऐसे में किसी के साथ रूम श्ोयर करना था, तो मुझे लगा कि दोस्त के साथ रहने में क्या बुराई है। आज हम दोनो बहुत खुश है। हां कई बार कुछ बातों को लेकर हमारे बीच झगड़ा हो जाता है। लेकिन हम एक दूसरे की केयर भी बहुत करते हैं।
केस 3
कानपुर निवासी एक युवक की पुलिस में भर्ती होने के बाद हजरतगंज में तैनाती मिली। राजधानी निवासी एक लड़की और सिपाही की फोन पर बातें होने लगी। इसके बाद वह दोनों साथ में रहने लगे। इसी दौरान महिला को पता चला कि सिपाही ने महिला थाने में ही तैनात एक महिला सिपाही से शादी रचा ली है। इस पर पीड़िता भड़क गई, उसने जमकर विरोध जताया। हालांकि मामला खाकी से जुड़ा होने की वजह से महिला आज भी गुहार लगा रही है।

केस 4
 गोमतीनगर में रहने वाले सीए दीपेंद्र गुप्ता कहते हैं कि वर्तमान में वह और उनकी एक सहकर्मी दो साल के लिव इन रिलेशन में रह रहे हैं। अगर उन दोनो की अच्छी निभेगी तो वे इस रिश्ते को आगे बढ़ाएंगे, नही तों समय पूरा होने पर वे अलग हो जाएंगे। हालांकि अभी तो वे एक दूसरे को अच्छे से समझ रहे हैं। सीए दीपेंद्र मूलत: छत्तीसगढ़ और उनकी सहकर्मी केरल की रहने वाली है।
शहर में लिव-इन रिलेशनशिप के बढ़ते मामले
महिला थाने में हर महीने दो से तीन केस लिव इन रिल्ोशनशिप में धोख्ो के दर्ज हो रहे हैं। बीते साल 3० से अधिक केसेज आए थे। महिला थाना प्रभारी शिवा शुक्ला बताती हैं कि राजधानी में भी लिव इन रिलेशन शिप का क्रेज तेजी से बढ़ रहा है। युवक-युवतियां सभी बिदांस होकर इसे अपना रहे हैं। जिससे इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। वर्तमान में अन्य मामलों के मुकाबले 4० पसेर्ंट से अधिक मामले लिव-इन रिलेशनशिप के दर्ज हो रहे हैं। वह कहती हैं कि लिव इन रिलेशनशिप में अधिकांश वे युवतियां या महिलाएं पीड़ित होती है जिनके पार्टनर कहीं बाहर से होते है या फिर वे स्वयं दूसरी जगह से आयी होती हैं। आज युवक ही नही अध्ोड़ भी लिव इन रिलेशनशिप जैसे रिश्तों का फायदा उठा रहे हैं, क्योंकि कई बार पीड़िताएं यही शिकायत लेकर आती है कि फलां आदमी उनके साथ इस रिश्ते में इतने दिनो से झूठ बोलकर रह रहा है। जबकि घर पर उसके बीवी-बच्चे सब हैं।



क्या सोचती है युवा पीढ़ी
वर्तमान युवा पीढ़ी लिव इन रिलेशनशिप जैसे संबंधों के प्रति अत्याधिक आकर्षित दिखाई दे रही है। इसके पीछे उनका तर्क यह है कि विवाह के बंधन में बंधने से पहले एक-दूसरे को अच्छी तरह से समझ लिया जाए तो वैवाहिक जीवन में ताल-मेल बैठा पाना और आसान हो जाता है। हालांकि हमारा परंपरावादी समाज महिला और पुरुष को विवाह से पहले साथ रहने की इजाजत नहीं देता कितु अब हमारे युवाओं की मानसिकता ऐसी सोच को नकारने लगी है जो उन्हें किसी भी प्रकार के बंधन में बांध कर रख पाए। इसीलिए युवा 'लिव इन’ में जाने से बिलकुल नहीं हिचकिचाते।
 लिव इन रिलेशनशिप जैसे रिश्तों में उन लोगों की रुचि होती है, जो भारतीय मूल्यों और संस्कृति में विश्वास नहीं रखते। परिवार की जिम्मेदारियों या संस्कार का नामोनिशान तक नहीं होता है। लिव इन रिलेशनशिप का चलन महानगरों में अधिक देखने को मिलता है। अब इसे बड़े शहरों में भी मान्यता मिल गई है। जिसे निश्चित रूप से उन युवाओं का समर्थन है, जो उसमें विश्वास रखते हैं हालांकि मान्यता मिलने या न मिलने से बहुत अधिक फर्क नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि सही और गलत समाज में पहले से ही मौजूद है। आज युवा लिव इन रिलेशनशिप को सही मानते हैं वजह ये है कि कई मौकों पर यह देखने में आता है कि महिलाएं और पुरुष जब प्रेम संबंध में पड़ते हैं तो उन्हें लगता है कि विवाह से पहले एक साथ रहना बहुत जरूरी है। वे सोचते हैं कि एक-दूसरे के साथ को लेकर सहज हो जाने से आगामी जीवन बिना किसी परेशानी के काटा जा सकता है।
दुष्प्रभाव
हम इस बात को कतई नकार नहीं सकते कि लिव इन जैसे संबंधों के टूटने का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव महिलाओं पर पड़ता है। हमारा समाज एक ऐसी महिला को कभी सम्मान नहीं दे सकता जो विवाह पूर्व किसी पुरुष के साथ एक ही घर में रह चुकी हो। ऐसे हालातों में संबंध जब टूटता है तो उसका भविष्य अंधकारमय हो जाता है। वहीं लिव इन में संलिप्त रह चुका पुरुष, जो हमेशा से ही महिलाओं की अस्मत से खेलना अपना अधिकार समझता आया है, की गलती को कोई महत्व ना देकर नजरअंदाज कर दिया जाता है।
 महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अपने संबंधों के प्रति अधिक संजीदा और भावनात्मक लगाव रखती हैं। इसीलिए लिव इन संबंध के टूटने का प्रभाव केवल उन महिलाओं पर ही पड़ता है जो परंपरावादी सोच वाली, आर्थिक तौर पर सेटल या अपने भविष्य को लेकर आश्वस्त नहीं हैं, बल्कि यह उन महिलाओं को भी अपनी चपेट में ले मानसिक रूप से आहत करता है जो मॉडर्न और आत्म-निर्भर होती हैं। हालंकि कई ऐसी महिलाएं भी हैं जो अपने कॅरियर को प्राथमिकता देते हुए शादी जैसी बड़ी और महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से बचना चाहती हैं, लेकिन ऐसे में उन महिलाओं की मनोदशा को नहीं नकारा जा सकता जो किसी बहकावे में आकर ऐसे झूठे रिश्तों की भेंट चढ़ जाती हैं।

सुप्रीम कोर्ट की राय


सर्वोच्च न्यायालय द्बारा 'लिव इन रिलेशनशिप’ के समर्थन में की गई टिप्पणी के बाद एक बार फिर 'परिवार’ नामक सामाजिक संस्था के अस्तित्व पर बहस छिड़ गई है। विदेशी संस्कृति का अंधाधुंध अनुसरण कर रही हमारी युवा पीढ़ी को इस टिप्पणी के जरिए एक और बहाना मिल गया है।
 भारत जैसे परंपरावादी देश में जहां आमतौर पर आबादी का बड़ा हिस्सा भगवान राम के 'एक पत्नी सिद्धांत’ को ही आदर्श मानता है, रामनवमी की पूर्व संध्या पर आई सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी उसके गले नहीं उतरी।
 सवाल यह है कि अगर हम आधुनिकता के नाम पर इन रिश्तों को अमली जामा पहनाते भी हैं तो युगों से सहेजी गई भारतीय संस्कृति और संस्कारों का क्या होगा? इस मुद्दे पर जब बात की विभिन्न वर्ग के लोगों से तो चौंकाने वाली प्रतिक्रिया सामने आई...
पहले भी रहे हैं ऐसे रिलेशंस
प्राथमिक विद्यालय कि शिक्षक प्रज्ञा श्रीवास्तव ने कहती हैं कि हमारे समाज में इस तरह की रिलेशनशिप धीरे-धीरे सामने आ रही है। यह नई बात भी नहीं है। सदियों से हमारे यहां इस तरह के रिलेशन्स मेंटेन होते रहे हैं। हालांकि इन्हें किसी भी नजरिए से सही नहीं ठहराया जा सकता।
भारतीय समाज में बढ़ावा नहीं मिलेगा
नेशनल कालेज कि छात्रा सुप्रिया चौरसिया का कहना है कि लिव इन रिलेशनशिप में उन लोगों की रुचि होती है जो भारतीय मूल्यों और संस्कृति में विश्वास नहीं करते हैं। जबकि इस कॉन्सेप्ट में परिवार की जिम्मेदारी या संस्कार का नामोनिशान तक नहीं होता। भारत में भी कुछ लोग इसमें रुचि रखते हैं लेकिन भारतीय समाज में इसे बहुत ज्यादा बढ़ावा नहीं मिलेगा।
गलत क्या है
लखनऊ विश्वविद्यालय से बी कॉम कर रही अनविका श्रीवास्तव का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी युवाओं के लिए सुकून भरी है। पहले भी इस तरह के रिश्ते दबे-छुपे मेंटेन होते थे। आज खुले दिमाग से सोचने की आवश्यकता है। न्यायालय द्बारा लिव इन रिलेशनशिप के समर्थन पर बवाल उठने का प्रश्न ही नहीं है। इसमें गलत क्या है।


अपनी-अपनी नैतिकता
फैशन डिजाइनिंग कर रहे शुभम पाण्डेय का कहना है कि इस तरह के संबंधों को सामाजिक स्वीकारोक्ति मिलना चाहिए। कानूनी उलझनों के कारण यह संबंध उजागर नहीं हो पाते हैं। जहां तक सवाल नैतिकता का है, वह व्यक्तिगत मामला है। जरूरी नहीं कि सभी के लिए नैतिकता के मायने समान हों।
झेलना पड़ता है विरोध
बीटेक छात्र मुकेश धामी कहते है कि इस तरह के रिलेशंस को लंबे समय तक मेंटेन करना मुश्किल होता है, साथ ही आपको समाज का विरोध भी झेलना पड़ता है। धीरे-धीरे परिस्थितियां बदल रही हैं। महानगरों में किसी लड़की का अकेला रहना इतना आसान नहीं होता, ऐसे में किसी पुरुष साथी की आवश्यकता होती ही है। जरूरत सिर्फ इस बात की है कि दोनों पार्टनसã एक-दूसरे को समझें और स्वयं पर काबू रखें।
महिलाएं समझती हैं भावनाएं
सरकारी कर्मचारी महेश शर्मा कहते हैं कि महानगरों में इस तरह के रिलेशनशिप आम है। फ्लैट्स के महंगे किराए और अन्य परेशानियों के चलते युवा इसे प्राथमिकता देते हैं। किसी पुरुष के साथ साझा रहने से बेहतर होता है किसी युवती के साथ रहा जाए। महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कहीं अधिक विश्वसनीय, भावनाओं को समझने वाली होती हैं।
अपना-अपना नजरिया
रियल स्टेट कंपनी में कार्यरत शिवानी कहती हैं कि व्यक्ति का अपना एक नजरिया होता है। लिव इन रिलेशनशिप का मसला भी ऐसा ही है। देश हो या विदेश न सभी लोग लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं। सभी को अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने का हक है। 

2 comments:

  1. In India LOVE is a Crime...& Another fact is that We can't change the mentality of Indian Society ..toh Live In Relationship ki toh bhot door ki baat hai

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  2. I totally agree with your words. But what can we do when the supreme court is taking side of them. The western culture is good but not in relationship. According to our tradition, we have to be in relationship with only one for whole life .

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