Monday 29 July 2013

                                        ये कैसा मजाक  था  ?

आधुनिक समाज  का अभिशाप है गरीबी और उसमे  बदनसीबी  यह  है कि  गरीबी  को गरीबी न मानना , इसमें सरकार  ने गरीबी के अभिशाप  का मजाक़  उड़ाते  हुआ गरीबी की नई  परिभाषा  लिखी  है ,जिस  रकम  में  आदमी अपनी एक दिन की आवशयक  ज़रूरते  भी  पूरी  न कर सके , उस  व्यक्ति  को सरकार  गरीबी रेखा  से ऊपर  कर दे, हमारी  सर्कार सच्चाई  जानना  और समझना ही नही चाहती है , इतनी  महंगाई  के  बीच  कांग्रेस  का यहाँ कहेना की शहर  में प्रतिदिन 32 rs और गावं  में 25 rs  अधिक  खर्चा करने वाला  गरीब नही  है ,नई  देल्ही में  5 rs  और मुंबई  में  १२ rs  में  भरपेट  भोजन  उपलब्ध  है , यह  शब्द  गुस्सा  दिलाने से कम नही  है , इस  घिनोने  मजाक उड़ाने  के पीछे  एक ही कारण  हो सकता  है कि वे जमीनी  हकीकत  से  अनजान  है , वे ये भूल  गए है कि  वे 80 -90 के  दशक  में  नही  है ,इस  चलती मंहगाई में  शायद  एक आदमी  इस रकम  में एक टाइम  का भरपेट  का खाना  भी न खा  सके अन्य  जरूरते  तो बाद  की चीज़े है , अगर सच्चाई  रूप  से देखा  जाये तो यदि  आम  लोग पौष्टिक  भोजन  का  प्रबन्ध  करने  में  नाकाम  है और अपने  बच्चो  को उचित  शिक्षा  एवं  अन्य  बुनियादी  जरूरते  उपलब्द नही  करा प् रहे  है तो  वे गरीबी रेखा से नीचे  ही कहलंगे , बेहतर  यह  होगा कि  सर्कार इस  चीज़ को समझ ले और यह  सोचे  कि  महंगाई के इस  दौर  में आम जनता और विशेष  रूप से निधर्न  तबके  के लोगो  की अवश्यकताओ  की पूर्ति कैसे  हो ?