Tuesday 17 September 2013

                 "शुद्ध  देशी रोमांस" का असर  युवाओ में 


अभी तक आपने  यश   राज  फिल्म की यादगार  प्रेम कहानियां  देखी  है   यश राज जी ने  कई  ऐतिहासिक  लव स्टोरी के साथ  ही कई यादगार जोडिया भी दी है  लेकिन जैसे जैसे युग बदला वैसे वैसे  परिभाषा  भी बदली  और साथ ही साथ यश राज की लव स्टोरीयों  में  भी बदलाव दिखने  मिले  हालहीं  में आई  यश राज जी की फिल्म "शुद्ध देशी रोमांस " में यश  जी ने आज की यंग जनरेशन  की सोच और उनके प्यार , शादी को  लेकर कन्फ्यूज्ड सोच सामने लाकर रख दिया  फिल्म की शुरुवात  से लेकर अंत तक यूथ के जीवन  की उन बातो और कमजोरियों  के बारे में पता चलेगा  जिनके  बारे में  पुराने  ज़माने  के लोग शायद सोच भी नही सकते।  आज की युवा पीढ़ी  अपने रिस्तो  और शादी लेकर किस हद तक कन्फ्यूज्ड है, किसी भी बंधन से बंधने   से कितना डरती है  हर चीज़  को समझने के लिए उन्हें पहले  उस चीज़  के बारे में experience चाहिए , इस फिल्म में जैसे  दिखाया  गया है "लिव इन रिलेशनशिप"  के बारे में , इसलिए  यूथ ने इस फिल्म को  पसंद  किया है  लिव इन रिलेशनशिप  जैसे चीजों  में उन लोगो की रूचि  होती है जो भारतीय  मूल्यों  और सांस्कृतिक  में विश्वास  नही रखते  और लिव  इन रिलेशनशिप इसी  का कांसेप्ट  है  परिवार  की जिम्मेदरिया या संस्कार  का नामोनिशान  तक नही  होता   अब इसका ट्रेंड  भारत में भी आ गया है लेकिन   समाज में इसे बहुत  अधिक  बढावा  नही मिला  लिव  इन रिलेशनशिप का चलन  महानगरो  में अधिक देखने  को मिल रहा है  जैसा  की अब इसे बड़े  शहरों  में मान्यता  मिल गयी है तो निश्चित  रूप से उन युवाओ का समर्थन  है जो इसमें  विश्वास  रखते है  हालाकिं  मान्यता मिलने या न मिलने से बहुत  अधिक फर्क  नही पड़ने  वाला है क्यूकि  सही  और गलत   समाज  में पहेले से ही मौजूद  है  पर आज कल के youngester  लिव  इन रिलेशनशिप को सही मानते है क्यूकि  अधिकतर मौको  पर यह  देखने  में आता  है  कि लोग शादी के बंधन में  बंधने  के बावजूद  एक दूसरे  के प्रति समर्पड  का भाव  अधिक  समय  तक नही रख पाते है इससे अच्छा  है की बेहतर  समय के आधार  पर वो लोग साथ रहे 
                                                               युवा पीढ़ी  अब बिना किसी  समझोते  , त्याग  और दायित्य  निर्वाहन  के उन्मुक्त  बंधनहिन   जीवन  जीना  चाहती  है अनेक  कानूनी  बाध्यताओ  के चलते  जहाँ  पुरुष  "विवाह " के नाम  से हिचकने  लगते है वही  महिलाओ  के लिए विवाह  एकतरफा    दायित्य का  निर्वाहन है  प्रशन यंहा  नही है की लिव  इन रिलेशनशिप  कितना सही  है या कितना  गलत  प्रशन  यह  है कि युवा  पीढ़ी  रिश्तो  के मायने  क्या समझती है ? यह तय  है कि  समाज के बाह्य  सुवरूप  में चाहे  कितना भी परिवर्तन  क्यों न हो जाए परन्तु   रिश्तो  को निभाने  के लिए प्रेम और समर्पड आवश्यक  है , भले  ही लिव  इन रिलेशनशिप को मान्यता मिल गयी हो पर हमारी परम्परा  और सांस्कृतिक  इसकी  इजाज्त  नही देता।  ऐसे  रिश्तो  का आगे  भविष्य  हो या न हो इसका  ठिकाना  भी नही होता है और इसमें सबसे  बड़ा नुकसान  लड़की का होता है , इसे अब चाहे  समाज की सोच कहे  या भारतीय  संस्कृति  , युवा  पीढ़ी को यह समझना होगा की शर्तो  पर टिके  रिश्तो  का जीवन अल्पहीन होता है ।  वह अधिक समय तक नही रहता है