Monday 24 February 2014


‘सुदंर चेहरा, ओजस्वी व्यक्तित्व ·भी उसकी  पहचान थी।
वाला  चश्मा, नकाब  और अभिशप्त जीवन अब उसका  वजूद है।’

किसी  सन कि  दॢरदे के  तेजाबी हमले कि  शिकार  हुई ये मासूम कलियां  इस ·दर कुचली  जा चुकी  हैं कि इनके  जीने का  मकसद  खत्म हो चुका  है। यंत्रणा और पीड़ा से भरा जीवन जीने को  मजबूर ये लड़किया  मृत्यु मांगने को  मजबूर हैं। पिछले कुछ  दशको  में गैंग रेप कि  तरह तेजाब भी औरतों के  खिलाफ ए· अचू· हथियार बन चुका  है।‘छेड़छाड़ का  विरोध किया, प्यार ठुकराया , शादी से इंकार  किया , इगो को  ठेस पहुंचाई, यहं तक  कि  इगनोर भी किया  तो तेजाब डाल कर  झुलसा दो। झुलसे चेहरे और जख्मों के  साथ जिन्दगी भर रोएगी और अफसोस ·रेगी कि  क्यों लिया पंगा।’हाल ही में अदालत द्वारा तेजाबी हमलों पर कुछ कठोर  नियम बनाने से आस तो जगी है लेकिन  ये नियम तेजाबी हमले रोकने में कितने कारगर होंगे ये कहना कठिन है। सवाल उठता है कि  क्या सुप्रीम कोर्ट के  निर्देश के  बाद तेजाब खुलेआम बिकना बंद हो जाएगा? क्या आई कार्ड द्वारा खरीदा गया तेजाब किसी को  नहीं जलाएगा? क्या तेजाब हमला गैर जमानती होने से ऐसे हमले रुकेगे? पीडि़ता को  मुआवजा बस तीन लाख। ये तीन लाख क्या जिन्दगी भर कि  बेबसी और जख्मों पर मरहम लगा पाएंगे। गौर कीजिए पांच दस लाख तो इलाज में ही खर्च हो जाते हैं। शादी ब्याह, बच्चे, नौकरी सभी ख्बाव को  तिलांजलि मिलने के  बाद आखिर कोई जिए भी तो किस सहारे। ऐसी उत्पीडऩ के  चलते अर्चना अपनी कहानी बयान करती है ।
  मैं अर्चना एक छोटे से शहर फरीदाबाद कि  रहने वाली,मेरे शहर से बड़े मेरे सपने थे। अपने मां बाप की  सबसे प्यारी और लाडली हूं । मेरे पैदा होने से लेकर मुझमें समझदारी आने के  बाद से मैंने उनके  आंखो में अपने लिए हजार सपनें देखे और उन सपनों को  पूरा करने का  ख्याल मेरे मन में हमेशा से रहा । यहा सोचती थी कि  एक  दिन सारे सपनों को खुद कि  मुठ्टी   में संजोग लूंगाी । करीबन तब १९ की  उम्र होगी मेरी, सहेलियो के  साथ स्कूल  जाना पढऩा लिखना खेल खूद सव में सबसे आगे रहेती थी । अभी बस सपनों कि  दुनिया में पैर ही रखा था कि  उसकी नजर मुझ पर पड़ी और वो मुझे इस कदर पसन्द करने लगा कि  मेरी मर्जी जनना ही नहीं चाहा । यह एक  तरफा प्यार था । मेरी कभी गलती से भी उस पर नजर पड़ जाती तो मुंह फेर लेती थी । उसका मुझे बार बार डराना धमकाना, धीरे धीरे उसका  प्यार पागलपन में तब्दील हो गया । उसका  प्यार मेरे लिए खौफ बन गया । मैंने अपनी ये बात अपने गांव के  प्रधान से बोली अपनी गुहार लगाई पर कोई ठोस कदम नहीं उठा । दिन बीते गये पर अब वक्त कुछ  अलग मोड़  दिखाने वाला था । हाथ में स्कूल  बैग रोजाना कि  तरह स्कूल के  लिए निकल पड़ी । वो दिन हर दिन कि  तरह था पर वक्त आज बदला नजर आ रहा था उस शख्स ने मुझे पल भर में अन्धकार में डाल दिया था । उस तेजाब की  बौछार से मेरी चमड़ी ही नहीं मेरी जिन्दगी मेरे सपनें भी जला कर राख कर  डाले । उस पल से मेरी जिन्दगी थम गई मेरे सपने मेरा बचपन सब उस तेजाब के  धुंए के  साथ खत्म हो गया ।
  आज मेरी उम्र २४ साल कि  है समय तो चल रहा है पर वो दर्दना· घटना आज भी मैं अपने साथ ले·र चल रही हूं। दैनिक  क्रिया के  लिए मां बाप ही एक मात्र सहारा हैं। पीड़ा इतनी है कि  ज़मीन पर एड़ी नहीं रखी जाती। गर्दन से लेकर लोअर एबडोमन तक  दर्द और जलन बना रहता है। गर्मी का एक एक  क्षण मौत के  बराबर।  मेरा दर्द अब मेरे घरवालो के  लिए भी असहनीय हो चुका है। वो भले ही अपना दर्द का  जिक्र  न करे पर आंखे सब कहा देती है ।

  कानून में संंशोधन काफी संजीदा ओर गम्भीर मामला है । इसकि प्प्रक्रिया या ऐसी बनाई जानी चाहिए ·कि विभिन्न कानून के  सन्दर्भ में आम आदमी कि  प्रतिक्रिया  मिलती रहे । फीडबैक  के  आधार पर इसमें सत्त सुधार होना चाहिए । तभी कानून समाज के  अनुकूल बना रहेगा और लोगों को  वास्तवि· न्याय मिल सकेगा । आज नए कानून ने अपराधियों की  केवल सजा बढ़ाई है। इसमें तेजाब हमले कि  शिकार पीडि़ता कि  मदद के  लिए कोई प्रावधान नहीं है। पीडि़ता को ताउम्र बदसूरत चेहरे और ‘मनोवैज्ञानि· घाव’ के  साथ जीने के  लिए मजबूर होना पड़ता है। वे तेजाब हमले से निपटने के  लिए एक  अलग कानून की  मांग कर  रहे हैं, जिसमें सहजता से बाजार में बिक  रहे नाइट्रिक  और सल्फ्यूरिक  अम्ल को  नियंत्रित करने के  लिए भी प्रावधान हो। तेजाब हमले कि  पीडि़ता को  दीर्घकालिक  सर्जरी कि  जरूरत होती है। सरकार  कि  इसे प्रावधानों में जरूर शामिल करना चाहिए। अपराधी को खबर होनी चाहिए कि वह किसी कि  लड़की  जिंदगी तबाह कर के  सजा से नहीं बच सकता।

Thursday 6 February 2014

आप  कि खास  हमारी  आस  , गिरती  साख 

वो दिन भी थे जब अन्ना अनशन में थे और केजरीवाल उनके सहयोगी तब केजरीवाल कि छवि एक आम यक्ति के रूप में थी। जिसने सब कि लड़ाई को कूद कि लड़ाई समझी और अकेले ही मैदान में निकलने कि सोची। पर आज अफ़सोस इस बात का है कि वो   जिस काम को करने के लिए निकले थे राजनीती में आ कर वे उसी रंग में ढलते नज़र आ रहे है । भ्रस्टाचार के खिलावफ आवाज़ उठा कर मुखमंत्री तो बन गए अब आप खुद को ईमानदार और दुसरो को भ्रस्टाचार साबित कर के कहीं आप प्रधानमंत्री बनने  कि तो नहीं  सोच रहे है ? बस  आपकी  चिंता  करते हुआ हम यही मनाएंगे  कि सता में में  आपका  पता सलामत  रहे .