Thursday 5 April 2018

                                              एक कविता...



एक कविता जो हमने लिखनी शुरू ही कि थी
वो पूरी न हो सकी
लिखने से पहले काव्य की नायिका
नायक से नाराज हो गई
और वो कविता अधूरी हो गई

नायिका कठोर थी
निष्ठुर थी
तो नायक भी लक्ष्य पाने को आतुर था
कदम बढ़ाने के लिए भी वह चतुर था
फिर भी कविता अधूरी रह गई
कवि ने अभी हार नहीं मानी है
रार नहीँ मानी है।
नायिका उसकी थी
है और रहेगी

                                      थी एक एेसी कहानी..




वह भी थी एक ऐसी कहानी..
 जब उसके होठों में थी मेरी जुबानी...
 दिल में जो होता था ..
उसकी आंखों में थी वह निशानी ..
वह भी थी एक ऐसी कहानी
मेरे मन की बातें उसके होठों में लहराती.
वह भी कहता मैं तेरा और तू मेरी हो जाती
वह भी थी एक ऐसी कहानी...
हर पल मुझसे बातें करता मेरी ही बातों को सुलझाता..
मेरे उलझे बालों को हर वक्त वह सहलाता...

- ख्वाबों का साहिर