जैसे-जैसे बचपन खत्म हुआ, दूरियां बढ़ी,
थोड़ी जिम्मेदारियां बढ़ी, थोड़ी मजबूरियां बढ़,
बदल गए रोज के चार झलक उसके
महीनों की एक मुस्कान में,
वो कानों में फुसफसाना उसका,
जान डाल देता था जो जान में,
अब तो महीनें बीत जाते हैं
एक दूसरे को देख नहीं पाते हैं,
अनगिनत किस्से सुनाते थे उसे कहां,
अब किस्से अनगिनत उसके सुनाते हैं...
No comments:
Post a Comment