Saturday 29 September 2012

आज मुझे इस बात का एहसाश हुआ की हम एक आजाद देश के आजाद   नगरिक  है जब  मेरी नज़र  आज   अपने   कॉलेज  से निकलते  वक़्त उन दीवारों  मे पड़ी जिसमें  लिखा था यहाँ पोस्टर लगाना माना  है और थूकना माना है  फिर भी  दीवार मानो  पोस्टर और  थूक  से  रंगीन हुई थी , क्या यही है आज़ादी से जीना ?आखिर क्यों न करे ऐसा ? आजाद देश के नगरिक जो ठहरे  हम , जिस एतिहसिक दीवारों को  सरकार  ने बचाने  के लिए क्या कुछ नही किया  वही उस  दीवार में  प्रेमी  जोड़े अपने नाम का एतिहस  लिखने में  जुटे  है , भाई हम आजाद जो है जो मर्ज़ी  वो करेंगे . है किसी  की हिम्मत हमे रोकने की ? बहार  से आये विदेशियों  को क्यों हम इज्ज्त  दे ?किसने कहा अतिथि: देवों:  भव: ? भाई ये बात तो केवल अपने देश में  रहने  वाले लोगो के लिए होती है  क्यों दे बहार  विदेशियों को इज्ज्त ? माँ ने बचपन  में  सिखाया  था की बेटा  मेहमान भगवान का   रूप  होते है अपना न खाया कोई नही देखता पर मेहमान  को देने वाले को  भगवान  देखता है . पर माँ न तो एक बात  बताई ही नही की बहार प्रदेश से आने वाला भी भगवान का ही रूप है . 1947 में गाँधी से हमे ये आज़ादी का अधिकार  दे कर चले गए पर आज भी उनकी इज्ज्त हमारे दिल में  है  बड़े बड़े नेता उनकी कागज़  में लगी तस्वीर  को दिख कर झुक जाते है ये  तो छोड़ो  उनकी  तस्वीर  की इतनी  इज्ज्त इतना मान  सम्मान है की  इंसान  अब भगवान को भी उनकी  तस्वीरो से खुश करने में लगा है . हाय रे ! ये आजाद देश के ये आजाद  नगरिक हम ? 

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