आज मुझे इस बात का एहसाश हुआ की हम एक आजाद देश के आजाद नगरिक है जब मेरी नज़र आज अपने कॉलेज से निकलते वक़्त उन दीवारों मे पड़ी जिसमें लिखा था यहाँ पोस्टर लगाना माना है और थूकना माना है फिर भी दीवार मानो पोस्टर और थूक से रंगीन हुई थी , क्या यही है आज़ादी से जीना ?आखिर क्यों न करे ऐसा ? आजाद देश के नगरिक जो ठहरे हम , जिस एतिहसिक दीवारों को सरकार ने बचाने के लिए क्या कुछ नही किया वही उस दीवार में प्रेमी जोड़े अपने नाम का एतिहस लिखने में जुटे है , भाई हम आजाद जो है जो मर्ज़ी वो करेंगे . है किसी की हिम्मत हमे रोकने की ? बहार से आये विदेशियों को क्यों हम इज्ज्त दे ?किसने कहा अतिथि: देवों: भव: ? भाई ये बात तो केवल अपने देश में रहने वाले लोगो के लिए होती है क्यों दे बहार विदेशियों को इज्ज्त ? माँ ने बचपन में सिखाया था की बेटा मेहमान भगवान का रूप होते है अपना न खाया कोई नही देखता पर मेहमान को देने वाले को भगवान देखता है . पर माँ न तो एक बात बताई ही नही की बहार प्रदेश से आने वाला भी भगवान का ही रूप है . 1947 में गाँधी से हमे ये आज़ादी का अधिकार दे कर चले गए पर आज भी उनकी इज्ज्त हमारे दिल में है बड़े बड़े नेता उनकी कागज़ में लगी तस्वीर को दिख कर झुक जाते है ये तो छोड़ो उनकी तस्वीर की इतनी इज्ज्त इतना मान सम्मान है की इंसान अब भगवान को भी उनकी तस्वीरो से खुश करने में लगा है . हाय रे ! ये आजाद देश के ये आजाद नगरिक हम ?
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