बच्चों में छिपे टैलेंट को धारदार बनाता है यह ‘चबूतरा’
एक ओर जहां समाज नें धीरे- घीरे मानवता का लोप हो रहा है, वहीं दूसरी अोर हमें कुछ एेसे उदाहरण भी मिल जाते हैं, जिससे एक सभ्य और मिलनसार समाज की कल्पनाएं अंगड़ाइयां लेने लगती हैं। एेसी ही एक कल्पना को साकार करने के लिए राजधानी लखनऊ के महेश चंद्र देवा ने कदम बढ़ाया है। देवा गरीब और पिछड़े बच्चों को अपनी संस्था 'चबूतरा' थिएटर पाठशाला से जोड़ कर उनकी रुचि के अनुसार उन्हें प्रशिक्षित करते हैं और उनमें आत्मविश्वास जगाते हैं ताकि गरीबी, बेबसी और लाचारी जैसे शब्द उनकी प्रतिभा को न दबा सकें। 'चबूतरा' के माध्यम से इन गरीब तबके के बच्चों को एक नई पहचान मिली है।
देवा बताते हैं कि कुछ महीने पहले जब तनीषा वाल्मीकि 'चबूतरा थिएटर पाठशाला' से जुड़ी तो वह बहुत संकोची और चुपचाप रहने वाली लड़की थी। रंगमंच के संस्थापक महेश चन्द्र देवा बताते हैं, तब तनीषा उसके बारे में पूछा जाता था तो वह चुप हो जाती थी। आज वह 50 लोगों के समूह के सामने अपनी बात रख सकती है। यहीं नहीं उसे बेस्ट एक्टिंग का अवॉर्ड भी मिल है। उसके अंदर एक्टिंग कि कला थी अौर उसकी इस कला को हमने अपने 'चबूतरा थिएटर' से पहचान दी।
वहीं दिया चौधरी की चित्रकला में रुचि है, उसकी रुचि के अनुसार हम उसे ड्राइंग प्रतियोगिता में मौका देते हैं। आकाश नाम का एक लड़का है जो डंस बहुत अच्छा करता है साथ ही एक्टिंग भी बहुत अच्छा कर लेता है। इस तरह अलग- अलग बच्चों में अलग- अलग बच्चों में अगल- अलग प्रतिभा देखने को मिलती है।
धीरे- धीरे बच्चों में काफी हद तक बदलाव आया। देवा कहते हैं कि हमारी कोशिश यहीं रहती है कि हमें बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार उनकी प्रतिभा को निखारें। साथ- साथ हम बच्चों को लेखन कला में भी मजबूत करते हैं। कविता, निबंध और कहानियां कैसी लिखी जाती हैं इसका भी बोध करवाते हैं।
रंगमंच इस समय चार से 14 बरस के 30 से ज्यादा बच्चों को जिंदगी जीना सिखा रहा है और उसने कई बच्चों के जिंदगी में भी एेसा ही फर्क पैदा किया है। बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाना उन्हें सिखाई जाने वाली महात्वपूर्ण बातों में से एक बिंदु है। यह संस्था चुपचाप लखनऊ के कुछ निम्म आय वाली कॉलोनियों के बच्चों की जिंदगियों में रंग खिला रही है।
देवा कहते हैं कि कुछ लोग हमारे साथ और हैं जो निस्वार्थ भाव से हमारे साथ काम करते हैं जैसे गायक के मनीष त्रिपाठी हैं जो बच्चों को सुर संगीत सिखाते हैं। अमर पाल जो जाने- माने कलाकार हैं वो बच्चों को मॉडलिंग सिखाते हैं। रिचा आर्य कथक की गुरु हैं।
समसामयिक मुद्दों पर होती है चर्चा
अब यह इस समूह के साथ प्रोफेशनल डांसर्स और थिएटर आर्टिस्ट के जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं जो बच्चों को सही तकनीक से रूबरू करवा सकें। समसामयिक मुद्दों का ज्ञान और सामुदायिक महात्व के मुद्दों पर चर्चा सत्रों की खासियत है। वे कहते है अक्सर बच्चे उन विभिन्न मुद्दों की तैयारी करके आते हैं जिन पर उन्हें चर्चा करनी होती है। आगे अब हम उन्हें लखनऊ महोत्सव के रंगमंच के लिए तैयार कर रहे हैं इसमें हम लखनऊ की खोई हुई पहचान को एक नाटक के तौर पर दिखाएंगे।
आत्मसम्मान जगाना ही लक्ष्य है
अब यह पाठशाला धीरे-धीरे अपने कार्यक्रम की रूपरेखा बना रहा है। अब तीन अलग- अलग बैच में 30 से ऊपर बच्चे हैं जो जिंदगी का सबक सीख रहे हैं। देवा कहते है उनका लक्ष्य समाज के उपेक्षित वर्ग में आत्मसम्मान जगाना है और आपसी भाईचारे को बढ़ाना है। युवाओं को प्रेरित करने के लिए उन्होंने बाल- संवाद करवाए।
देवा आशा जताते हैं कि अभी हम संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं लेकिन ये बच्चे अगर अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो शायद आगे कोई मुश्किल नहीं आएगी।
http://up.patrika.com/lucknow-news/chabootra-theatre-pathshala-teach-poor-children-4901.html