Tuesday, 16 July 2019

इश्क मुश्किल है..
काफी मुश्किल है...
उबर खाबर पड़ाव है..
जिस पर चलना नंगे पांव है..
ठोकर तो काफी लगेगी..
तुम हर ठोकर पर हाथ कसके थाम लेते हो तो बात कुछ और होगी..
हां मैं मानता हूं कि इश्क जाहिर करने में मैं थोड़ा कच्चा हूं..
मगर इश्क है, तुमसे हैं,बेहद है, लो सरेआम कहता हूं।

Thursday, 11 July 2019




जैसे-जैसे बचपन खत्म हुआ, दूरियां बढ़ी,
थोड़ी जिम्मेदारियां बढ़ी, थोड़ी मजबूरियां बढ़,
बदल गए रोज के चार झलक उसके
महीनों की एक मुस्कान में,
वो कानों में फुसफसाना उसका,
जान डाल देता था जो जान में,
अब तो महीनें बीत जाते हैं
एक दूसरे को देख नहीं पाते हैं,
अनगिनत किस्से सुनाते थे उसे कहां,
अब किस्से अनगिनत उसके सुनाते हैं...

Sunday, 23 September 2018

पहली मुलाकात

याद है मुझे जब हमारी पहली मुलाकात हुई थी ..
अपने घर के आंगन में दूर खड़ी मैं उसी तरह तुम्हें देख रही थी  जिस तरह तुम मुझे देख रहे थे..

यूं तो सपनों में कई बार मिले थे हम,  पर पहली बार हमारी आंखें चार हुई थी जब हमारी पहली मुलाकात हुई थी..

हमारी नजर एक दूसरे पर पड़ी ही थी कि शर्मा उठे थे हम दोनों..

ना जाने कैसी हलचल थी जब हमारी पहली मुलाकात हुई थी..

 सांसी धीरे से सहर से रही थी रही थी दिल की धड़कन तेज सी हो रही थी..

जिंदगी की नई शुरुआत हुई थी जब तुम से पहले मुलाकात हुई थी..

फरवरी की थोड़ी सी गर्मी, और मेरी बेतुकी बातों को तुम्हारा यूँ घंटो झेल जाना.. खूबसूरत एहसास था वो जब तुमसे पहली मुलाकात हुई थी..

फिर बातों बातों में, उस लम्हे का गुज़र जाना,और फिर तुम्हारा विदा कह जाना, याद है मुझे हमारी आखिरी मुलाकात हुई थी..

पता नही फिर कभी हम मिलें या ना मिलें,
वो हमारी पहली मुलाकात.. याद है मुझे हमारी आखिरी मुलाकात हुई थी..

पर सालों बाद भी जब मैं जिंदगी के इन पन्नो को पलटूगीं इनमे तुम्हारा भी जिक्र होगा, कुछ यादें होगी,आँखों में नमी और होठों पर हँसी के साथ एक बात होगी,
कि याद है मुझे हमारी पहली और आखिरी मुलाकात...ruchi sharma. 

Saturday, 9 June 2018

  • क्या लिखूं 


तुम्हारे बारे में क्या लिखूं कम लिखू या ज्यादा लिखूं
हंसी लिखूं या अांसू लिखूं..
प्यार  लिखूं या गुस्सा लिखूं
पास लिखूं या दूर लिखूं
तुम्हारी मासूमियत लिखूं या अपनी चुलबुलाहाट लिखूं
तुम्हे अपना लिखूं या अपनी तुम्हे लिखूं
अपनी जलन लिखूं या तुम्हारा जलाना लिखूं
अपना रूट जाना लिखूं या तुम्हारा मनना लिखूं
तुम्हारा देखना लिखूं या अपनी नजरे झुकाना लिखूं
क्या लिखूं कितना लिखूं... सिर्फ तुम्हे लिखूं

Thursday, 5 April 2018

                                              एक कविता...



एक कविता जो हमने लिखनी शुरू ही कि थी
वो पूरी न हो सकी
लिखने से पहले काव्य की नायिका
नायक से नाराज हो गई
और वो कविता अधूरी हो गई

नायिका कठोर थी
निष्ठुर थी
तो नायक भी लक्ष्य पाने को आतुर था
कदम बढ़ाने के लिए भी वह चतुर था
फिर भी कविता अधूरी रह गई
कवि ने अभी हार नहीं मानी है
रार नहीँ मानी है।
नायिका उसकी थी
है और रहेगी

                                      थी एक एेसी कहानी..




वह भी थी एक ऐसी कहानी..
 जब उसके होठों में थी मेरी जुबानी...
 दिल में जो होता था ..
उसकी आंखों में थी वह निशानी ..
वह भी थी एक ऐसी कहानी
मेरे मन की बातें उसके होठों में लहराती.
वह भी कहता मैं तेरा और तू मेरी हो जाती
वह भी थी एक ऐसी कहानी...
हर पल मुझसे बातें करता मेरी ही बातों को सुलझाता..
मेरे उलझे बालों को हर वक्त वह सहलाता...

- ख्वाबों का साहिर

Monday, 21 December 2015




बच्चों में छिपे टैलेंट को धारदार बनाता है यह ‘चबूतरा’

chabutra

एक ओर जहां समाज नें धीरे- घीरे मानवता का लोप हो रहा है, वहीं दूसरी अोर हमें कुछ एेसे उदाहरण भी मिल जाते हैं, जिससे एक सभ्य और मिलनसार समाज की कल्पनाएं अंगड़ाइयां लेने लगती हैं। एेसी ही एक कल्पना को साकार करने के लिए राजधानी लखनऊ के महेश चंद्र देवा ने कदम बढ़ाया है। देवा गरीब और पिछड़े बच्चों को अपनी संस्था 'चबूतरा' थिएटर पाठशाला से जोड़ कर उनकी रुचि के अनुसार उन्हें प्रशिक्षित करते हैं और उनमें आत्मविश्वास जगाते हैं ताकि गरीबी, बेबसी और लाचारी जैसे शब्द उनकी प्रतिभा को न दबा सकें। 'चबूतरा' के माध्यम से इन गरीब तबके के बच्चों को एक नई पहचान मिली है।

देवा बताते हैं कि कुछ महीने पहले जब तनीषा वाल्मीकि  'चबूतरा थिएटर पाठशाला' से जुड़ी तो वह बहुत संकोची और चुपचाप  रहने वाली लड़की थी। रंगमंच के संस्थापक महेश चन्द्र देवा बताते हैं, तब तनीषा उसके बारे में पूछा जाता था तो वह चुप हो जाती थी। आज वह 50 लोगों के समूह के सामने अपनी बात रख सकती है। यहीं नहीं उसे बेस्ट एक्टिंग का अवॉर्ड भी मिल है। उसके अंदर एक्टिंग कि कला थी अौर उसकी इस कला को हमने अपने 'चबूतरा थिएटर' से पहचान दी।

chabutra

वहीं दिया चौधरी की चित्रकला में रुचि है, उसकी रुचि के अनुसार हम उसे ड्राइंग प्रतियोगिता में मौका देते हैं। आकाश नाम का एक लड़का है जो डंस बहुत अच्छा करता है साथ ही एक्टिंग भी बहुत अच्छा कर लेता है। इस तरह अलग- अलग बच्चों में अलग- अलग बच्चों में  अगल- अलग प्रतिभा देखने को मिलती है।

धीरे- धीरे बच्चों में काफी हद तक बदलाव आया। देवा कहते हैं कि हमारी कोशिश यहीं रहती है कि हमें बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार उनकी  प्रतिभा को निखारें। साथ- साथ हम बच्चों को लेखन कला में भी मजबूत करते हैं। कविता, निबंध और कहानियां कैसी लिखी जाती हैं इसका भी बोध करवाते हैं।

रंगमंच इस समय चार से 14 बरस के 30 से ज्यादा बच्चों को जिंदगी जीना सिखा रहा है और उसने कई बच्चों के जिंदगी में भी एेसा ही फर्क पैदा किया है। बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाना उन्हें सिखाई जाने वाली महात्वपूर्ण बातों में से एक बिंदु है। यह संस्था चुपचाप लखनऊ के कुछ निम्म आय वाली कॉलोनियों के बच्चों की जिंदगियों में रंग खिला रही है।

देवा कहते हैं कि कुछ लोग हमारे साथ और हैं जो निस्वार्थ भाव से हमारे साथ काम करते हैं जैसे गायक के मनीष त्रिपाठी हैं जो बच्चों को सुर संगीत सिखाते हैं। अमर पाल जो जाने- माने कलाकार हैं वो बच्चों को मॉडलिंग सिखाते हैं। रिचा आर्य कथक की गुरु हैं।

समसामयिक मुद्दों पर होती है चर्चा


chabutra

अब यह इस समूह के साथ प्रोफेशनल डांसर्स और थिएटर आर्टिस्ट के जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं जो बच्चों को सही तकनीक से रूबरू करवा सकें। समसामयिक मुद्दों का ज्ञान और सामुदायिक महात्व के मुद्दों पर चर्चा सत्रों की खासियत है। वे कहते है अक्सर बच्चे उन विभिन्न मुद्दों की तैयारी करके आते हैं जिन पर उन्हें चर्चा करनी होती है। आगे अब हम उन्हें लखनऊ महोत्सव के रंगमंच के लिए तैयार कर रहे हैं इसमें हम लखनऊ की खोई हुई पहचान को एक नाटक के तौर पर दिखाएंगे।

आत्मसम्मान जगाना ही लक्ष्य है

अब यह पाठशाला धीरे-धीरे अपने कार्यक्रम की रूपरेखा बना रहा है। अब तीन अलग- अलग बैच में 30 से ऊपर बच्चे हैं जो जिंदगी का सबक सीख रहे हैं। देवा कहते है उनका लक्ष्य समाज के उपेक्षित वर्ग में आत्मसम्मान जगाना है और आपसी भाईचारे को बढ़ाना है। युवाओं को प्रेरित करने के लिए उन्होंने बाल- संवाद करवाए।

देवा आशा जताते हैं कि अभी हम संसाधनों  की कमी से जूझ रहे हैं लेकिन ये बच्चे अगर अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो शायद आगे कोई मुश्किल नहीं आएगी।

http://up.patrika.com/lucknow-news/chabootra-theatre-pathshala-teach-poor-children-4901.html